Friday, December 19, 2014

इंसानियत की मौत

क़त्ल हुआ मासूमों का
मरी इंसानियत तड़प तड़प के..
बिखरे आँसू टूटी आस
रोई हर माँ बिलख बिलख के..
खून के क़तरे के संग 
अरमानों के टुकड़े थे..
बह रहा था दर्द हर जगह
मुस्कानों के चीथड़े थे..
स्कूल से छुट्टी हो गई
चले सारे घर की ओर..  
जन्नत का रास्ता था उनका
वे ख़ुदा के अपने बच्चे थे..


सार्थक सागर